आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकताश्रीराम शर्मा आचार्य
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आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
जिस श्रद्धा के सहारे मीरा ने गिरधर गोपाल को साथ रहने के लिए विवश किया,
एकलव्य ने द्रोणाचार्य की मिट्टी से बनी प्रतिमा को असली द्रोण से भी अधिक
समर्थ बनाया था, रामकृष्ण परमहंस ने पत्थर की प्रतिमा को जीवन्त काली जैसा
भोग ग्रहण करने के लिए सहमत कर लिया था, वह श्रद्धा तत्व ही आत्मिक प्रगति
का आधारभूत कारण है। इसे उपार्जित करने के लिए जीवन्त गुरु का आश्रय लेना
पड़ता है। व्यायामशाला में प्रवेश करके ही बलिष्ठ पहलवान बनने की बात सधती
है। डम्बलों/मुगदरों के सहारे भुजदण्ड मजबूत किये जाते हैं। श्रद्धा
संवर्धन के लिए गुरु - प्रतीक को सदाशयता की प्रतिमा मानकर चलना होता है।
यह भाव निर्धारण प्राय: वैसा ही है जैसा कि मिट्टी के ढेले से कलावा लपेट
कर उसे श्रद्धा-आरोपण द्वारा साक्षात् गणेश जैसा समर्थ बनाया जाता है।
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- आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
- श्रद्धा का आरोपण - गुरू तत्त्व का वरण
- समर्थ बनना हो, तो समर्थों का आश्रय लें
- इष्टदेव का निर्धारण
- दीक्षा की प्रक्रिया और व्यवस्था
- देने की क्षमता और लेने की पात्रता
- तथ्य समझने के उपरान्त ही गुरुदीक्षा की बात सोचें
- गायत्री उपासना का संक्षिप्त विधान